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वाघा बॉर्डर पर नफरत ओर जसन

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भारत और पाकिस्तान की वाघा सीमा पर दोनों देशों के सैनिक दोनों ओर से सैकड़ों दर्शकों की मौजूदगी में नियमित परेड करते हैं. इस दौरान दोनों तरफ़ से लोग एक-दूसरे के देश के ख़िलाफ़ ज़ोरदार नारे लगाते हैं, यहाँ तक कि दोनों तरफ के सैनिक आम लोगों को इसके लिए प्रेरित भी करते हैं. दो पड़ोसी देशों के आम नागरिकों में इस तरह की भावना भरना कहाँ तक सही है? पढ़ें स्वतंत्र मिश्र का लेख विस्तार से कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई गोलाबारी में क्षतिग्रस्त घर. कुलवंत तांगेवाले ने वाघा बॉर्डर के बारे में जिक्र छिड़ते ही चुप्पी साध ली. बहुत कुरेदने पर कहा कि हमारे पिताजी पश्चिमी पंजाब से अमृतसर आए थे. देश की आजादी के साथ-साथ हमने घृणा का बीज भी बो दिया. अब घृणा का पेड़ बहुत बड़ा हो गया. उसकी बात हमें तब सच लगने लगी जब वाघा बॉर्डर पर सीमा सुरक्षा बल के सैनिक और अधिकारी दैनिक परेड के समय दर्शकदीर्घा में बैठे लोगों से पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाने को कह रहे थे. वाघा बॉर्डर पर हर रोज शाम छह बजे दोनों ही देश के सैनिक बल अपने-अपने देश का झंडा उतारने की रस्म पूरी करते हैं और खून में उबाल लाने की