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Corona virus भविष्यवाणी वाली किताब का खुलासा
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Coronavirus भविष्यवाणी वाली किताब का चोंकाने वाला खुलासा।
युद्ध भारत और पाकिस्तान के मध्य दिनांक मई - जुलाई 1999 स्थान कारगिल, जम्मू और कश्मीर परिणाम भारत को विजयश्री प्राप्त हुई भारत पाकिस्तान युद्ध विशेष भारतीय सेना ने इस युद्ध की चुनौती को इ'ऑपरेशन विजय' का नाम दिया। अन्य जानकारी कारगिल का 'ऑपरेशन विजय' इस कारण भी महत्त्वपूर्ण था क्योंकि पाकिस्तानियों ने इस पर क़ब्ज़ा करके बढ़त प्राप्त करने की योजना बनाई थी। यदि पाकिस्तानियों को कारगिल से नहीं खदेड़ा जाता तो निकट भविष्य में वे कश्मीर की काफ़ी भूमि पर क़ब्ज़ा कर सकते थे। कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच मई और जुलाई 1999 के बीच कश्मीर के कारगिल जिले में हुए सशस्त्र संघर्ष का नाम है। कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में सामरिक महत्त्व की ऊँची चोटियाँ भारत के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। उन दुर्गम चोटियों पर शीत ऋतु में रहना काफ़ी कष्टसाध्य होता है। इस कारण भारतीय सेना वहाँ शीत ऋतु में नहीं रहती थी। इसका लाभ उठाकर पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ ने आतंकवादियों के साथ पाकिस्तानी सेना को भी कारगिल पर क़ब्ज़ा करने के लिए भेज दिया। वस्तुत: पाकिस्तान ने सीमा सम्बन्धी नि
नमस्कार दोस्तो आज कि इस पोस्ट में आपको माँ ज्वाला देवी मंदिर के बारे में बताऊंगा जो बड़ा हि रोचक है ये मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में है इस मंदिर के अंदर हजारों सालों से एक ज्योत जल रही है अपने आप प्राक्रतिक रूप से इस ज्योति के रहस्य के बारे में वैज्ञानिक भी आज तक पत्ता नहीं लगा सके है कई लोग ये मान रहे है कि कहीं से गेस लिक होने के कारण ये ज्योति जल रही है पर ऐसा बिलकुल भी नहीं है ऑयल एंड नेचुरल गेस कार्पोरेशन लिमिटेड के वैज्ञानिकों ने इस मंदिर के आस पास के इलाकों में गहराई से जाँच कि पर कंही भी तेल और गेंस के होने के प्रमाण नहीं मिले इस मंदिर में प्रथ्वी के अंदर से निकल रही 9 ज्वालाओं कि पूजा होती है इसे भक्तजन जोतों वाली माता भी कहते है इस जगह माता सती कि जीभ गिरी थी ये माता का सक्ती पिंड है यहाँ माता के 9 रूपों कि पूजा होती है माता अनपूर्ण ,चंडी ,हिंग्लाज ,सरस्वती ,अम्बिका ,महालक्ष्मी ,विन्द्यावासिनी ,अनजिदेवी ,और ज्वाला देवी ,माता के इन रूपों कि पूजा होती है मंदिर का प्रवेश द्वार बहुत हि सुंदर है मंदिर में एक अकबर कि नहर है जिससे अकबर ने जलती हुई ज्वाला को भुजाने कि
टीएन मिश्र, लखनऊ पुरी से हरिद्वार के बीच चलने वाली उत्कल एक्सप्रेस (18477) के 14 कोच शनिवार को पटरी से उतर गए। इनमें से आठ कोच एक दूसरे पर चढ़ गए। हादसे में कम से कम 21 यात्रियों की जान चली गई, जबकि 100 से ज्यादा यात्री घायल हो गए। इससे पहले, मीडिया रिपोर्ट्स में 23 यात्रियों के मारे जाने की खबर आ रही थी। दुर्घटना की वजह एक ओर जहां पटरी का टूटना बताया जा रहा है, वहीं इस ट्रेन में पुरानी तकनीक वाले कन्वेंशनल कोच लगे होने को भी यात्रियों की मौत का कारण माना जा जा रहा है। पुरुषोत्तम एक्सप्रेस की तर्ज पर अगर कलिंग-उत्कल एक्सप्रेस में भी लिंक हाफमेन बुश (एलएचबी) कोच लगे होते तो आठ कोच एक दूसरे पर न चढ़ते। इससे कई यात्रियों की जान बच सकती थी। रिसर्च डिजाइन्स ऐंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (RDSO) ने करीब एक दशक पहले ही टक्कररोधी कोच का आलमनगर में सफल परीक्षण किया था। उसके बाद कोचों की डिजाइन में सुधार भी किया था। रेलवे बोर्ड ने निर्देश दिए थे कि अब लंबी दूरी की ट्रेनों में आधुनिक टक्कररोधी एलएचबी कोच लगाए जाएंगे। इसके बावजूद यह काम गति नहीं पकड़ सका है। एलएचबी कोचों और सीबीसी कपलिंग होने से
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