संदेश

Tren Hadsa in Mujafarnagar

चित्र
टीएन मिश्र, लखनऊ पुरी से हरिद्वार के बीच चलने वाली उत्कल एक्सप्रेस (18477) के 14 कोच शनिवार को पटरी से उतर गए। इनमें से आठ कोच एक दूसरे पर चढ़ गए। हादसे में कम से कम 21 यात्रियों की जान चली गई, जबकि 100 से ज्यादा यात्री घायल हो गए। इससे पहले, मीडिया रिपोर्ट्स में 23 यात्रियों के मारे जाने की खबर आ रही थी। दुर्घटना की वजह एक ओर जहां पटरी का टूटना बताया जा रहा है, वहीं इस ट्रेन में पुरानी तकनीक वाले कन्वेंशनल कोच लगे होने को भी यात्रियों की मौत का कारण माना जा जा रहा है। पुरुषोत्तम एक्सप्रेस की तर्ज पर अगर कलिंग-उत्कल एक्सप्रेस में भी लिंक हाफमेन बुश (एलएचबी) कोच लगे होते तो आठ कोच एक दूसरे पर न चढ़ते। इससे कई यात्रियों की जान बच सकती थी। रिसर्च डिजाइन्स ऐंड स्टैंडर्ड्स ऑर्गनाइजेशन (RDSO) ने करीब एक दशक पहले ही टक्कररोधी कोच का आलमनगर में सफल परीक्षण किया था। उसके बाद कोचों की डिजाइन में सुधार भी किया था। रेलवे बोर्ड ने निर्देश दिए थे कि अब लंबी दूरी की ट्रेनों में आधुनिक टक्कररोधी एलएचबी कोच लगाए जाएंगे। इसके बावजूद यह काम गति नहीं पकड़ सका है। एलएचबी कोचों और सीबीसी कपलिंग होने से...

मरने के बाद आत्मा कहाँ जाती है ओर कैसे

चित्र
जीवन और मृत्यु दोनों ही संसार का परम सत्य है। जो धरती पर आया है उसका एक दिन जाना तय है। यह जानते हुए भी मनुष्य मरने से डरता है और जब मृत्यु की घड़ी नजदीक आ जाती है तब प्राणों से और मोह बढ़ जाता है। लेकिन यम के दूत मोह में फंसे हुए व्यक्ति की एक नहीं सुनते हैं और यमपाश में बांधकर व्यक्ति की आत्मा को शरीर से बाहर खींच लेते हैं। यम पाश में बंधा प्राणी लाख जोर लगा ले लेकिन उससे मुक्त नहीं हो पाता है और अंततः उसे शरीर को और अपने सगे-संबंधियों को छोड़कर जाना पड़ता है। मृत्यु के समय की इस स्थिति का वर्णन गुरूड़ पुराण में मिलता है। इस पुराण में बताया गया है कि जब मृत्यु की घड़ी निकट आती है तो यम के दो दूत मरने वाले प्राण के सामने आकर खड़े हो जाते हैं। उन्हें देखकर प्राणी घबरा जाता है। जुबान बंद हो जाती है। प्राणी बोलना चाहता है लेकिन गले से घर-घर की आवाज आती है कुछ बोल नहीं पाता है। यमदूत यमपाश फेंककर जब शरीर से प्राण खींचने लगते हैं तब पूरे जीवन में व्यक्ति ने जो भी कर्म किए हैं वह सारी घटनाएं व्यक्ति की आंखों के सामने से एक-एक करके तेजी गुजरती है       मरने के बाद हमारे ...

लोक देवता गोगा जी का इतिहास

चित्र
 गोगाजी राजस्थान के लोक देवता हैं जिन्हे जहरवीर गोगा जी के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक शहर गोगामेड़ी है। यहां भादव शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी देवता का मेला भरता है। इन्हे हिन्दु और मुस्लिम दोनो पूजते है| वीर गोगाजी गुरुगोरखनाथ के परमशिस्य थे। चौहान वीर गोगाजी का जन्म विक्रम संवत 1003 में चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था सिद्ध वीर गोगादेव के जन्मस्थान, जो राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा ददरेवा में स्थित है। जहाँ पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्‍था टेकने और मन्नत माँगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए। गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। च...

मोस्ट हॉन्टेड प्लेस भानगड़

चित्र
भानगढ़ का किला, राजस्थान के अलवर जिले में स्तिथ है।  इस किले सी कुछ किलोमीटर कि दुरी पर विशव प्रसिद्ध सरिस्का राष्ट्रीय उधान () है।  भानगढ़ तीन तरफ़ पहाड़ियों से सुरक्षित है। समरिक दृष्टि से किसी भी राज्य के संचालन के यह उपयुक्त स्थान है। सुरक्षा की दृष्टि से इसे भागों में बांटा गया है। सबसे पहले एक बड़ी प्राचीर है जिससे दोनो तरफ़ की पहाड़ियों को जोड़ा गया है। इस प्राचीर के मुख्य द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। इसके पश्चात बाजार प्रारंभ होता है, बाजार की समाप्ति के बाद राजमहल के परिसर के विभाजन के लिए त्रिपोलिया द्वार बना हुआ है। इसके पश्चात राज महल स्थित है। इस किले में कई मंदिर भी है जिसमे भगवान सोमेश्वर, गोपीनाथ, मंगला देवी और केशव राय के मंदिर प्रमुख मंदिर हैं। इन मंदिरों की दीवारों और खम्भों पर की गई नक़्क़ाशी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह समूचा क़िला कितना ख़ूबसूरत और भव्य रहा होगा। सोमेश्वर मंदिर के बगल में एक बाबड़ी  है जिसमें अब भी आसपास के गांवों के लोग नहाया करते हैं । भानगढ़ का इतिहास (History Of Bhangarh) :- भानगढ़ क़िले को आमेर के राजा भगवंत दास...

परमवीर चक्र विजेता सूचि

भारत का सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले वीरों की सूची इस प्रकार है : संख्या नाम रेजीमेंट तिथि स्थान टिप्पणी IC-521 मेजर सोमनाथ शर्मा चौथी बटालियन, कुमाऊँ रेजीमेंट 3 नवंबर, 1947 बड़गाम, कश्मीर मरणोपरांत IC-22356 लांस नायक करम सिंह पहली बटालियन, सिख रेजीमेंट 13 अक्तूबर, 1948 टिथवाल, कश्मीर SS-14246 सेकेंड लेफ़्टीनेंट राम राघोबा राणे इंडियन कार्प्स आफ इंजिनयर्स 8 अप्रैल, 1948 नौशेरा, कश्मीर 27373 नायक यदुनाथ सिंह पहली बटालियन, राजपूत रेजीमेंट फरवरी 1948 नौशेरा, कश्मीर मरणोपरांत 2831592 कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह छ्ठी बटालियन, राजपूताना राइफल्स 17-18 जुलाई, 1948 टिथवाल, कश्मीर मरणोपरांत IC-8497 कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया तीसरी बटालियन, १ गुरखा राइफल्स 5 दिसंबर, 1961 एलिजाबेथ विले, काटंगा, कांगो मरणोपरांत IC-7990 मेजर धनसिंह थापा पहली बटालियन, गुरखा राइफल्स 20 अक्तूबर, 1962 लद्दाख, JC-4547 सूबेदार जोगिंदर सिंह पहली बटालियन, सिख रेजीमेंट 23 अक्तूबर, 1962 तोंगपेन ला, नार्थ इस्ट फ्रंटियर एजेंसी, भारत मरणोपरांत IC-7990 मेजर शैतान सिंह तेरहवीं बटालियन, कुमाऊँ ...

Shree Madbhgwad Gita Rahasye Saster

चित्र
Description:-[There is a difference of. opinion as to how the words 'paryapta' and 'aparyapta' are to be understood, 'paryapta' ordinarily means 'sufficient'. Therefore, some interpret this stanza as meaning, " the army of the Pandavas is sufficient, and our army is insufficient[1] ". But, this interpretation is not correct. In the foregoing chapters of the Udyogaparva, Duryodhana, while describing their army to Dhrtarastra has given the names of the above mentioned commanders of his army, and has said :- "As my army is very large and well-trained, I am bound to win the war "[2] ; similarly, when Duryodhana again describes his army to Dronacarya, further on in the Bhismaparva, he has uttered the words of the above stanzas of the Gita[3] ; and as this description has been given in a joyful frame of mind, in order to encourage the whole army, the word 'aparyapta', cannot possibly be interpreted otherwise than as meaning ...

वाघा बॉर्डर पर नफरत ओर जसन

चित्र
भारत और पाकिस्तान की वाघा सीमा पर दोनों देशों के सैनिक दोनों ओर से सैकड़ों दर्शकों की मौजूदगी में नियमित परेड करते हैं. इस दौरान दोनों तरफ़ से लोग एक-दूसरे के देश के ख़िलाफ़ ज़ोरदार नारे लगाते हैं, यहाँ तक कि दोनों तरफ के सैनिक आम लोगों को इसके लिए प्रेरित भी करते हैं. दो पड़ोसी देशों के आम नागरिकों में इस तरह की भावना भरना कहाँ तक सही है? पढ़ें स्वतंत्र मिश्र का लेख विस्तार से कश्मीर में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई गोलाबारी में क्षतिग्रस्त घर. कुलवंत तांगेवाले ने वाघा बॉर्डर के बारे में जिक्र छिड़ते ही चुप्पी साध ली. बहुत कुरेदने पर कहा कि हमारे पिताजी पश्चिमी पंजाब से अमृतसर आए थे. देश की आजादी के साथ-साथ हमने घृणा का बीज भी बो दिया. अब घृणा का पेड़ बहुत बड़ा हो गया. उसकी बात हमें तब सच लगने लगी जब वाघा बॉर्डर पर सीमा सुरक्षा बल के सैनिक और अधिकारी दैनिक परेड के समय दर्शकदीर्घा में बैठे लोगों से पाकिस्तान के खिलाफ नारे लगाने को कह रहे थे. वाघा बॉर्डर पर हर रोज शाम छह बजे दोनों ही देश के सैनिक बल अपने-अपने देश का झंडा उतारने की रस्म पूरी करते हैं और खून में उबाल लाने की...