मरने के बाद आत्मा कहाँ जाती है ओर कैसे

जीवन और मृत्यु दोनों ही संसार का परम सत्य है। जो धरती पर आया है उसका एक दिन जाना तय है। यह जानते हुए भी मनुष्य मरने से डरता है और जब मृत्यु की घड़ी नजदीक आ जाती है तब प्राणों से और मोह बढ़ जाता है। लेकिन यम के दूत मोह में फंसे हुए व्यक्ति की एक नहीं सुनते हैं और यमपाश में बांधकर व्यक्ति की आत्मा को शरीर से बाहर खींच लेते हैं।
यम पाश में बंधा प्राणी लाख जोर लगा ले लेकिन उससे मुक्त नहीं हो पाता है और अंततः उसे शरीर को और अपने सगे-संबंधियों को छोड़कर जाना पड़ता है। मृत्यु के समय की इस स्थिति का वर्णन गुरूड़ पुराण में मिलता है। इस पुराण में बताया गया है कि जब मृत्यु की घड़ी निकट आती है तो यम के दो दूत मरने वाले प्राण के सामने आकर खड़े हो जाते हैं।

उन्हें देखकर प्राणी घबरा जाता है। जुबान बंद हो जाती है। प्राणी बोलना चाहता है लेकिन गले से घर-घर की आवाज आती है कुछ बोल नहीं पाता है। यमदूत यमपाश फेंककर जब शरीर से प्राण खींचने लगते हैं तब पूरे जीवन में व्यक्ति ने जो भी कर्म किए हैं वह सारी घटनाएं व्यक्ति की आंखों के सामने से एक-एक करके तेजी गुजरती है
      मरने के बाद हमारे कर्मों के अनुसार जीवात्मा को दंड मिलता है   यह सारी घटनाएं कर्म बनकर आत्मा के साथ जुड़ जाती हैं। इन्ही कर्मों को देखकर यमराज प्राणी के विषय में न्याय करते हैं। पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति जीवन में जितना पाप करता है उसे मृत्यु के समय उतना ही अधिक कष्ट सहना पड़ता है। क्योंकि व्यक्ति अपने किए कर्मों से मिलने वाली सजा से डरा होता है।

जैसे गलती करने के बाद माता-पिता के समाने आने से बालक डरता है और कोने में छुपकर बैठा रहना चाहता है। इसलिए मृत्यु के समय कष्ट से मुक्ति के लिए मोह का त्याग आवश्यक बताया गया है। जो प्राणी प्राण के मोह से मुक्त हो जाता है उसे मरने के समय कम कष्ट होता है

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